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बीए सेमेस्टर-3 चित्रकला प्रथम प्रश्नपत्र

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2676
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-3 चित्रकला प्रथम प्रश्नपत्र

प्रश्न- अजन्ता की खोज कब और किस प्रकार हुई? इसकी प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख करिये।

अथवा
अजन्ता गुफा के चित्रों की विशेषतायें बताइये।

उत्तर -

अजन्ता बौद्ध चित्रकला का प्रमुख केन्द्र है। अजन्ता की इन बिहार गुफाओं में न केवल चित्रकला अपितु स्थापत्यकला और मूर्तिकला का भी अपूर्व संयोग देखने को मिलता है। अजन्ता की कलाकृतियों की लोकप्रियता का एकमात्र कारण है- भक्ति, उपासना और प्रेम की त्रिवेणी का मनोरम संगम है। इन भव्य एवं विशालकाय कलाकृतियों में अभय, भूमिस्पर्श एवं धर्मचक्र प्रवर्तन की विभिन्न मुद्राओं द्वारा भगवान तथागत् के जीवन सिद्धान्तों विशेष रूप से शान्ति और अहिंसा के उपदेशों का जिस कुशलता से अभिव्यंजन किया गया है, वह विश्व के कलाजिज्ञासुओं के लिए उसका चिन्तन महत्वपूर्ण है।

अजन्ता में कला की जो अपरिमित समृद्धि देखने को मिलती है उससे सहज ही यह सिद्ध होता है कि उसके सृष्टा कलाकार अपने-अपने युगों का प्रतिनिधित्व करते थे। उन निपुण कलाकारों ने अजन्ता की कला घाटी का निर्माण कर, भारतीय संस्कृति की समृद्धि में अपूर्व योगदान दिया। अजन्ता की ये कलाकृतियाँ भारतीय संस्कृति की चरमोन्नति का द्योतन करती हैं।

अजन्ता की कलाकृतियों का निर्माण मौर्य, शुंग, सातवाहन, कुषाण, वाकाटक और गुप्त आदि अनेक राजवंशों के समय (300 ई. पूर्व से 700 ई. पूर्व तक) निरन्तर होता गया। लगभग प्रथम शताब्दी से लेकर 7वीं शताब्दी तक अजन्ता की कलाकृतियों का विशेष रूप से निर्माण होने के साथ-साथ पुनरुद्धार और पुनः संस्कार भी होता रहा। इस सम्बन्ध में यह बात भी विशेष रूप से ध्यान देने योग्य है कि उसके निर्माण में प्रत्येक राजवंश ने बड़ी अभिरुचि दिखायी। उन चित्रों में जो अनेकता के दर्शन होते हैं उसका कारण भी यही है कि वे विभिन्न युगों में निर्मित होते रहे। उनका बारीकी से विश्लेषण करने वाले कालवेत्ता विद्वानों का अभिमत है कि अजन्ता में लगभग 20 प्रकार की विभिन्न शैलियों का सम्मिश्रण है, किन्तु उनमें प्रधानता गुप्त शैली की है।

सैकड़ों वर्षों तक घने जंगलों में जानवरों, चमगादड़ों और पक्षियों का निवास स्थान बने रहने के बाद, सन् 1919 ई. में इन कला मन्दिरों का दर्शन मद्रास सेना के उन अधिकारियों को हुआ जो वहाँ शिकार की खोज में पहुँचे थे। उसके तीन वर्ष बाद 1822 ई. में विलियम रॉग्स्कन ने बाम्बे लिटरेरी सोसाइटी के लिए एक लेख में अजन्ता में प्राप्त कला मन्दिरों का विस्तृत वर्णन पढ़ा। फिर 1824 ई. में जेम्स ई. एलेक्जेन्डर (James E. Alexender) ने इन गुफाओं का दर्शन किया और उन्होंने इसमें सुरक्षित सुन्दर चित्रों की सूचना रॉयल एशियाटिक सोसाइटी को दी। 1843 ई. में भारतीय मूर्तिकला तथा वास्तुकला के जिज्ञासु जेम्स करग्यूमन ने इन चित्रित गुफाओं का वर्णन लिखकर, ईस्ट इण्डिया कम्पनी को दिया तथा इनकी सुरक्षा के लिए आग्रह किया। फलस्वरूप रोबर्ट गिल नामक एक महान चित्रकार को 1844 ई. में भेजा गया, जिसने यहाँ आकर अजन्ता के चित्रों के प्रति लिपियाँ तैयार कीं, जिनका कि इंग्लैण्ड में क्रिस्टल पैलेस में प्रदर्शन हुआ, परन्तु 1866 ई. में किसी कारणवश आग लग जाने से यह प्रतिलिपियाँ जल गईं, इसके पश्चात् सन् 1870 से 1881 ई. तक बम्बई आर्ट स्कूल के प्रिंसिपल मि. ग्रिभित्स ने अपने विद्यार्थियों की सहायता से फिर अजन्ता के चित्रों की प्रतिकृतियाँ तैयार कराईं और इन्हें दो बड़ी जिल्दों में प्रकाशित किया। यह चित्र भी लंदन में किसी कारण आग लग जाने से भस्म हो गये। इनमें से कुछ बचे हैं जो कि साऊथ क्रिसिङ्गटन के अल्बर्ट म्यूजियम में सुरक्षित हैं। तदोपरान्त 1909 1911 ई. में लेडी हरिघंम भारत आयीं और उन्होंने श्री नन्दलाल बोस तथा अन्य कई भारतीय चित्रकारों की सहायता से पुनः अजन्ता के चित्रों की कुछ प्रतिलिपियाँ तैयार कराईं। उन्होंने निजाम से भी सहायता माँगी, जिसके फलस्वरूप सर सैय्यद अहमद खाँ वहाँ के अध्यक्ष नियुक्त हुए, जिन्होंने फिर से इन चित्रों की नकल कराई। उसके कुछ समय पश्चात् भारत सरकार ने चार जिल्दों में इन चित्रों को प्रकाशित किया और प्रकाशित करने के पश्चात् ललित कला एकेडमी ने यहाँ के चित्रों के फोटोग्राफ तैयार किये और सर्वसाधारण तक इन चित्रानुकृतियों तथा छवि पहुँचाने का प्रयास किया है। 1908 में अजन्ता की गुफाओं के लिए एक क्यूरेटर की नियुक्ति हुई, जिससे कि यहाँ की सुरक्षा का पूर्णरूपेण प्रबन्ध हो गया। 9वीं तथा 10वीं गुफा सबसे प्राचीन मानी जाती है। 12वीं व 13वीं गुफा में चित्र प्रायः समाप्त हैं। 8वीं, 9वीं, 11वीं गुफाओं में कुछ मूर्तियाँ भी हैं। 11वीं व 13वीं गुफा 50 ई. में निर्मित है। शेष सभी गुफायें 500 ई. तक बनी हैं। पहली व दूसरी गुफा का निर्माण काल 628 से 622 ई. माना जाता है क्योंकि एक चित्र में राजा पुलकेशिन द्वितीय फारस के सम्राट खुसरो परवेज के राजदूत का स्वागत करता हुआ दिखलाया गया है। यह घटना 7 वीं शताब्दी में हुई थी। अब तो केवल 1, 2, 9, 10, 11, 16, 17, 19 और 21वीं गुफा में कुछ चित्र बचे हैं। इन सबमें 17 वीं गुफा में सबसे अधिक चित्र हैं।

अजन्ता चित्रकला की विशेषतायें - अजन्ता के चित्रों की ख्याति संसार के कोने-कोने में व्याप्त हो चुकी है। विश्व की प्रायः सभी भाषाओं में अजन्ता के चित्रों पर अनेक बहुमूल्य पुस्तकों का निर्माण हो चुका है। अपनी अपूर्वता एवं असाधारणता के कारण ही उनको यह सम्मान प्राप्त हुआ। अजन्ता की चित्रकला में कुछ प्रमुख विशेषतायें देखने को मिलती हैं, जिनके कारण ही यह कला विश्व विख्यात बनी। ये विशेषतायें निम्न हैं

1. रेखा का सौन्दर्य - अजन्ता के चित्रों में रेखाओं की सूक्ष्मता एवं प्रवाहमानता के दर्शन होते हैं। उनमें कहीं भी भारीपन, उलझाव तथा संकोच दृष्टिगत नहीं होता। तूलिका में इतनी गतिमयता है कि थोड़े ही प्रत्यावर्तन से चित्र की रूपरेखा उभर आती है। गेरू की वर्तिका से चित्रों में रेखांकन किया गया है और तदन्तर रंग भरे गये हैं। भारतीय चित्रकार के लिए रेखा एक चित्रोपम मर्यादा है। अजन्ता के चितेरा रेखीय अंकन में निपुणता के बल पर ही नग्न आकृतियों को भी एक सौम्य और सैद्धान्तिक रूप में प्रस्तुत कर सका। अजन्ता की चित्रकला में रेखाओं का बहुत महत्व है। संसार के चित्रों में कहीं भी रेखाओं द्वारा इतना सुन्दर भाव प्रदर्शन व गतिमयता नहीं है। रेखीय सौन्दर्य से ही मॉडलिंग का बोध यहाँ के कुशल कलाकारों के दक्ष हाथों से हुआ। रेखाओं के प्रयोग में गति, लय, संयम व सन्तुलन सदैव बने रहे। भावांकन के लिए प्रसिद्ध यहाँ के चित्रों में रेखा ही प्रधान रही। केवल हाथ की उँगलियों द्वारा भाव प्रदर्शन रेखाओं को ही शक्ति एवं लोच का प्रभाव है। मार, विजयं सर्वनाश, दया याचना जैसे अनेक चित्र यहाँ प्रयुक्त रेखा की प्रधानता स्थापित करते हैं। ये रेखायें कहीं मोटी हैं, कहीं मध्यम तथा कहीं पर महीन दृष्टिगत होती हैं, परन्तु कलाकार ने जो भाव प्रकट करना चाहा है, सफलता से प्रकट किया है। रेखायें लयात्मक हैं, जिसके कारण चित्रों में लावण्य उत्पन्न हो गया है। तात्पर्य यह है कि अजन्ता के चित्र भारतीय इतिहास में अपना विशिष्ठ स्थान रखते हैं।

2. भाव प्रवणता - अजन्ता के चित्रों में भाव प्रवणता का प्रमुख स्थान है। हार्दिक और मानसिक भावों की प्राञ्जल व्यंजना ही अजन्ता की कला की विशेषता है। इन चित्रों में करुणा, शान्ति, उल्लास, सौहार्द्र, भक्ति, विनय तथा विफलता आदि प्राञ्जल भावनाओं की सुन्दर व्यंजना हुई है। भाव प्रवणता ही अजन्ता की चित्रकला की आत्मा है। भगवान बुद्ध की अहिंसा, करुणा, मैत्री मुर्दिता आदि भाव इन चित्रों में दृष्टिगोचर होते हैं। गज जातक के हाथियों में वात्सल्य से चित्रकारों ने पशुओं की भी भावाभिव्यंजना प्रस्तुत की है। मानव को, लज्जा प्रेम, भय, शोक, उत्साह, क्रोध, घृणा, चिन्ता, त्याग आदि बड़े सुन्दर रूप में प्रदर्शित किया गया है, जिनकी संसार भर में प्रसिद्धि है।

3. रंगों की संयोजना - अजन्ता के चित्रों में अंकन विधि और रंग संयोजन बड़ी निपुणता से किया गया है। केवल सीमित रंगों से विभिन्न प्रकार के रंगों का संयोजन तथा प्रयोग विधि ही अजन्ता के चित्रों की मौलिकता हैं। गेरू, रामरज, हिरोजी, नील, काजल तथा चूने से ही सम्पूर्ण चित्रण है। इन थोड़े से ही चित्रों ने विविधता पैदा की है तथा हजारों वर्षों तक वहीं चमक-दमक बनी रहने के कारण चित्रकार सम्मान के पात्र हैं। जंगलों के दृश्यों में वृक्ष, लता, पत्र, सरोवर आदि में जिस दक्षता से रंगों का प्रयोग किया गया है उससे सुन्दर रंग योजना की सीमित रंगों में कल्पना भी नहीं की जा सकती। अजन्ता में रंग तथा उनकी विविधताओं का प्रयोग म्यूरलस वाली प्रविधि अपनाने से सम्भव हो सका। यहाँ पीले रंग के लिए पीली मिट्टी, लाल रंग के लिए गेरू, सफेद के लिए चीनी मिट्टी जिप्सम या चूना, काले के लिए काजल, नीले रंग के लिए लाजवर्द बाहर से आयात किया जाता था। बाकी सभी रंग स्थानीय खनिजों से उपलब्ध किये जाते थे। इन रंगों को गोंद अथवा सकेस को घोलकर तैयार किया जाता था। कम वर्णों के प्रयोग से भी वर्ण की संयोजकता स्पष्ट परिलक्षित है।

4. जीवन की विविधता - अजन्ता की कलाकृतियों में जीवन के विभिन्न पक्षों का दर्शन होता है और गाँवों का शान्तिमय वातावरण और नगरों की कोलाहलपूर्ण अनेकान्तता कलाकृतियों में स्पष्ट परिलक्षित है। आध्यात्मिक एवं भौतिक जीवन का चित्रण अजन्ता की चित्रकारी में मिलता है। एक ओर यदि नगर चित्रण तो दूसरी ओर उतनी ही मार्मिक अभिव्यंजना ग्रामीण जीवन के चित्रण में है। राजा से लेकर रंक तक और समाज के समस्त पहलुओं को ध्यान में रखते हुये कलाकृति बनायी गईं। आध्यात्मिक रूपों में यहाँ देवी, देवता, किन्नर, गन्धर्व, अप्सरा, राक्षस इत्यादि सभी की विशेषताओं और स्थान पर विशेष ध्यान देते हुए चित्रण किया गया है। संक्षेप में कहना चाहिए कि अजन्ता के चित्रों में गुप्तयुगीन संस्कृति की सौम्यता एवं सार्वभौमिकता सर्वत्र दृष्टिगोचर है।

5. हस्तमुद्राओं द्वारा भाव प्रदर्शन - अजन्ता के चित्रों की सबसे बड़ी विशेषता विभिन्न प्रकार की हस्त मुद्राओं एवं अभिनय मुद्राओं की यथास्थान भावाभिव्यक्ति है। इन हस्तमुद्राओं के द्वारा विचारों एवं भावों की अभिव्यंजना का चित्रण बड़ा ही मार्मिक व हृदयस्पर्शी है। हाथों की विभिन्न मुद्रायें विभिन्न अवसरों पर आशा, निराशा, विनय, सर्वनाश, क्षमा, सेवा, त्याग, करुणा इत्यादि भाव प्रकट करती हैं। वे उँगलियाँ चित्र का सम्पूर्ण भाव समझाने में सामर्थ्य हैं। ये सब उन महान कलासाधकों की ही देन है। जिन्होंने अजन्ता के चित्रों को अमरत्व प्रदान किया। मुख की भंगिमा और नेत्रों का लास्य इन चित्रों का विशेष आकर्षण है, किन्तु हस्तमुद्रायें तो बहुत हीं मार्मिक एवं प्रांजल है। उनमें गति, स्थिरता एवं लय का समावेश है, ये अभिनय मुद्रायें शास्त्रीय दृष्टि से बनाई गई हैं।

6. रूढ़िहीनता - अजन्ता की गुफाओं में चित्रों के विषय की पुनरावृत्ति अवश्य हुई है, परन्तु उनके चित्रण में प्रत्येक बार मौलिकता के दर्शन होते हैं। हर चित्रकार ने अपनी कृति में एक नवीनता लाने का प्रयास किया है। यदि रंगों के आधार पर देखा जाये तो कम से कम 20 प्रकार की शैलियाँ अलग की जा सकती हैं। इसी से रूढ़िहीनता सिद्ध होती है।

7. नारी का आदर्श रूप - अजन्ता के चित्रों में नारी के आदर्श रूप की अभिव्यंजना सर्वथा श्लाध्य उल्लेखनीय है। अजन्ता की ये नारी आकृतियाँ कला की अधिष्ठात्र देवियाँ हैं। नारी को सौन्दर्य का प्रतीक माना जाता है, परन्तु अजन्ता के चित्रकारों ने नारी को कला की अधिष्ठात्री देवी के स्वरूप में सम्मान दिया है। उनमें आध्यात्मिक और भौतिक दोनों प्रकार की अभिरुचियों का समन्वय है। वे भारतीयता के आदर्श एवं मर्यादा के अनुरूप हैं और भारतीय चित्रकार के गौरव तथा गरिमा की प्रतीक हैं। भौतिक या शारीरिक आकर्षण का केन्द्र न होकर, अजन्ता में नारी आध्यात्मिकता, वात्सल्य, करुणा, प्रेरणा एवं शक्ति की परिचायिका है। अधिकतर नारी अर्द्धनग्न रूप में चित्रित की गई है, परन्तु उन कला के उपासकों ने उस रूप में भी शालीनता का जो दर्शन कराया, वह विश्व में अद्वितीय है।

8. छतों की सजावट - भित्तिचित्र के साथ-साथ अजन्ता में छतों पर भी सुन्दर अलंकरण किया गया है। इसमें यह विशेषता है कि साधन का अभाव होने पर भी छतों के आलेखन में मचान बनाकर तथा मशाल जलाकर इतना सुन्दर अलंकरण किया कि कहीं भी कमी दृष्टिगोचर नहीं होती। अजन्ता में आलेखन अधिकतर छतों में किया गया है। बहुत से चौखटों में पूरी छत को विभक्त करके उनमें सुन्दर आलेखन किया गया है। अधिकतर आलेखनों में कमल का प्रयोग है जो कि अद्वितीय है। ज्यामितीय आलेखन भी यहाँ बहुत उत्कृष्टता के साथ प्रयोग किया गया है। आलेखन में युगल भी बनाये गये हैं। कमल के कितने कलात्मक एवं अलंकृत रूप हो सकते हैं उन सभी को अजन्ता में देखा जा सकता है।

9. अलंकरण भगवान बुद्ध के जीवन तथा उपदेशों से ओत-प्रोत होने के साथ-साथ अजन्ता की कला अलंकृत भी है। मुकटों, वस्त्रों तथा आभूषणों में जो अलंकरण प्रयोग किया गया है वह देखने योग्य है। इनमें मीन, मकर, हाथी, तोता, कमल, हिरन, बैल तथा विभिन्न प्रकार के सुन्दर फूल दृष्टिगोचर होते हैं। ज्यामितीय आधार भी अजन्ता का चित्रकार आलेखन बनाने में पूर्णतया सफल हुआ है।

10. चित्रों का संयोजन - चित्रों का संयोजन अजन्ता के कलाकारों का विशेष गुण था, जो भी दृश्य अंकित किया गया है। इस प्रकार संयोजित है कि दृष्टा का ध्यान मुख्य दृश्य या व्यक्ति पर केन्द्रित होता है। मुख्य व्यक्ति को उन्होंने अन्य चित्रों से बड़ा बनाया है, जहाँ भी बोधिसत्व का चित्रण है उनको अन्य व्यक्तियों से दोगुना बनाया है। जैसाकि माता-पुत्र के चित्र में दिखाया गया है, जिसमें भगवान बुद्ध भिक्षा माँग रहे हैं। आकृतियों की विविधता व सघनता को चित्रतल पर सफलता के साथ विस्तारित करना कठिन कार्य है। चित्रों का महत्व उसमें प्रयुक्त शैली संयोजन शैली के कारण है। इस प्रकार संयोजन में केन्द्रियता के नियम का पालन किया गया है। अन्य चित्रोपम तत्वों के प्रयोग में भी सौन्दर्यानुभूति ही मुख्य मार्गदर्शक सिद्धान्त रही है। वर्ण योजना, शीतलता व रेखा लयपूर्ण समायोजित की गई है।

11. केश विन्यास - अजन्ता के कलाकारों ने जिस केश विन्यास की आज से 2000 वर्ष पूर्व रचना की तथा वे नये-नये ढंग से प्रस्तुत किये थे। आज का महिला जगत अब भी उससे प्रेरणा लेकर कुछ ज्ञानवर्द्धन कर सकता है।

12. पशु-पक्षियों का भावपूर्ण चित्रण - अजन्ता की चित्रकारी में, पशु पक्षियों का जितना सुन्दर भावपूर्ण चित्रण हुआ है विश्व में कहीं पर भी ऐसा चित्रण सम्भव नहीं, विशेषकर हाथी का चित्रण अधिक सुन्दर है। अजन्ता के कलाकारों ने पशुओं के चित्रण में उनकी भाव- भंगिमा की अभिव्यक्ति विशेष रूप से की गई है। गण जातक में जब श्वेत हाथी अपने अन्धे माता-पिता से मिलता है तो जो वात्सल्य और प्रेमाभिव्यक्ति हुई है, वह अभूतपूर्व है।

13. प्रकृति चित्रण - प्रकृति चित्रण में कदली, पीपल, अशोक, आम्र, बरगद, ताड़ इत्यादि का वास्तविक स्वरूप अंकित किया गया। प्रकृति चित्रण में सजीवता तथा वास्तविकता का आभास होता है।

14. युद्ध चित्रण - अजन्ता में युद्ध के दृश्यों का चित्रण भी सजीवता से परिपूर्ण है। पहली गुफा में दो सांड़ों का युद्ध चित्र बड़ा रोचक है।

15. प्रतीकात्मक चित्र - अजन्ता के चित्रों में हाथी, कमल, बेलपत्र, लताओं इत्यादि का चित्रण प्रतीकात्मक रूप से हुआ है, क्योंकि इन्हें मंगल का प्रतीक माना जाता है। हाथी की अधिक मान्यता है क्योंकि पिछले जन्म में भगवान बुद्ध हाथी थे। ऐसा जातक कथाओं में आया

16. षडण के आधार पर चित्र - अजन्ता चित्रकला में वात्स्यायन के कामसूत्र में वर्णित षड़गों का पूर्णतया पालन हुआ है, परन्तु कहीं-कहीं स्वतन्त्रता से भावाभिव्यक्ति करने के लिए अजन्ता में कलाकारों ने कुछ मौलिकता प्रदर्शित की है।

17. वस्त्राभूषण - जिस समय अजन्ता की गुफायें बनीं, उस समय वस्त्राभूषण कैसे पहने जाते थे, उनका आभास वहाँ के चित्रों से हो जाता है। आभूषणों में विभिन्न प्रकार के मुकुट, माला, बाजूबन्द, कर्ण कुण्डल, मुद्रिका, कर्धनी, पाजेब, चूड़ियाँ विभिन्न प्रकार से बनाई गई हैं। आश्चर्य की बात है कि किसी भी दो आकृतियों के आभूषण एक से नहीं हैं। वस्त्रों में केवल अर्धवस्त्र ही आकृतियों को पहनाये गये।

उपरोक्त विशेषताओं के आधार पर हम कह सकते हैं कि अजन्ता की कलाकृतियों का स्थान भारतीय इतिहास में अपना विशिष्ट स्थान रखता है।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- दक्षिण भारतीय कांस्य मूर्तिकला के विषय में आप क्या जानते हैं?
  2. प्रश्न- कांस्य कला (Bronze Art) के विषय में आप क्या जानते हैं? बताइये।
  3. प्रश्न- कांस्य मूर्तिकला के विषय में बताइये। इसका उपयोग मूर्तियों एवं अन्य पात्रों में किस प्रकार किया गया है?
  4. प्रश्न- कांस्य की भौगोलिक विभाजन के आधार पर क्या विशेषतायें हैं?
  5. प्रश्न- पूर्व मौर्यकालीन कला अवशेष के विषय में आप क्या जानते हैं?
  6. प्रश्न- भारतीय मूर्तिशिल्प की पूर्व पीठिका बताइये?
  7. प्रश्न- शुंग काल के विषय में बताइये।
  8. प्रश्न- शुंग-सातवाहन काल क्यों प्रसिद्ध है? इसके अन्तर्गत साँची का स्तूप के विषय में आप क्या जानते हैं?
  9. प्रश्न- शुंगकालीन मूर्तिकला का प्रमुख केन्द्र भरहुत के विषय में आप क्या जानते हैं?
  10. प्रश्न- अमरावती स्तूप के विषय में आप क्या जानते हैं? उल्लेख कीजिए।
  11. प्रश्न- इक्ष्वाकु युगीन कला के अन्तर्गत नागार्जुन कोंडा का स्तूप के विषय में बताइए।
  12. प्रश्न- कुषाण काल में कलागत शैली पर प्रकाश डालिये।
  13. प्रश्न- कुषाण मूर्तिकला का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  14. प्रश्न- कुषाण कालीन सूर्य प्रतिमा पर प्रकाश डालिये।
  15. प्रश्न- गान्धार शैली के विषय में आप क्या जानते हैं?
  16. प्रश्न- मथुरा शैली या स्थापत्य कला किसे कहते हैं?
  17. प्रश्न- गांधार कला के विभिन्न पक्षों की विवेचना कीजिए।
  18. प्रश्न- मथुरा कला शैली पर प्रकाश डालिए।
  19. प्रश्न- गांधार कला एवं मथुरा कला शैली की विभिन्नताओं पर एक विस्तृत लेख लिखिये।
  20. प्रश्न- मथुरा कला शैली की विषय वस्तु पर टिप्पणी लिखिये।
  21. प्रश्न- मथुरा कला शैली की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  22. प्रश्न- मथुरा कला शैली में निर्मित शिव मूर्तियों पर टिप्पणी लिखिए।
  23. प्रश्न- गांधार कला पर टिप्पणी लिखिए।
  24. प्रश्न- गांधार कला शैली के मुख्य लक्षण बताइये।
  25. प्रश्न- गांधार कला शैली के वर्ण विषय पर टिप्पणी लिखिए।
  26. प्रश्न- गुप्त काल का परिचय दीजिए।
  27. प्रश्न- "गुप्तकालीन कला को भारत का स्वर्ण युग कहा गया है।" इस कथन की पुष्टि कीजिए।
  28. प्रश्न- अजन्ता की खोज कब और किस प्रकार हुई? इसकी प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख करिये।
  29. प्रश्न- भारतीय कला में मुद्राओं का क्या महत्व है?
  30. प्रश्न- भारतीय कला में चित्रित बुद्ध का रूप एवं बौद्ध मत के विषय में अपने विचार दीजिए।
  31. प्रश्न- मध्यकालीन, सी. 600 विषय पर प्रकाश डालिए।
  32. प्रश्न- यक्ष और यक्षणी प्रतिमाओं के विषय में आप क्या जानते हैं? बताइये।

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